अपना घर (Apna ghar)- रियल लाइफ स्टोरी इन हिंदी (Best motivation story in hindi):
बढ़ती हुई मानव आबादी के इस दौर में, अपना घर (Apna ghar) होना गौरव की बात होती है| कई बार घर बनाने की चाहत, एक नशा बन जाती है जिसकी, चपेट में आकर ज़्यादातर मनुष्य, अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं तो क्या, अपना घर बनवाना वाक़ई में एक सम्मान की बात है या, किसी की सोची समझी साज़िश? इसे समझने के लिए, आइए चलते हैं इस ख़ूबसूरत कहानी की ओर, जिसका नाम है “अपना घर”। विनय शहर में एक किराये के घर में, अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था| वह एक निजी कंपनी में लिपिक के तौर पर कार्यरत था| कई साल नौकरी करने के बाद विनय ने थोड़े बहुत पैसे जोड़े थे जिनसे, वह अपना घर ख़रीदना चाहता था| विनय एक दिन अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, एक मकान देखने जाता है| उसे मकान बहुत अच्छा लगता है लेकिन, मकान की क़ीमत सुनते ही वह मना कर देता है| दरअसल मकान की क़ीमत उसकी हैसियत से दोगुनी थी लेकिन, फिर भी उसकी पत्नी ने उसकी हिम्मत बढ़ाते हुए, उसे यही मकान लेने को कहा| विनय अपनी पत्नी और बच्चों की ख़ुशी के लिए, बैंक ऋण लेकर वही घर ख़रीद लेता है| घर ख़रीदते ही, विनय की हैसियत उसके परिवार और समाज में बढ़ जाती है| धीरे धीरे विनय को, अपने घर का घमंड होने लगा और अब वह अकड़कर चलना सीख गया था लेकिन, कुछ ही महीनों के अंदर विनय की ख़ुशी, ग़म में बदलने लगी| ब्याज पर लिए गए ऋण की वजह से, विनय की आधी वेतन कट जाती थी| शुरू में तो विनय को इसका कोई फ़र्क नहीं पड़ा लेकिन, जैसे ही ख़र्चे बढ़ने लगे तो, उसे अपनी आर्थिक स्थिति की चिंता सताने लगी| फिर भी विनय जोड़ तोड़ करके अपना घर चला ही रहा था लेकिन, एक दिन अचानक विनय के छोटे बेटे की तबीयत ख़राब हो जाती है जिससे, वह डर जाता है और अपने बेटे को लेकर अस्पताल भागता है| अस्पताल में इलाज के दौरान पता चलता है कि, बच्चे को कैंसर है और उसका ऑपरेशन करना बहुत ज़रूरी है नहीं तो, उसकी जान को ख़तरा हो सकता है|
डॉक्टरों की बात सुनते ही, विनय और उसकी पत्नी घबरा जाते हैं| विनय की धड़कनें तेज होने लगती है क्योंकि, वह वैसे ही बैंक के क़र्ज़े में लदा हुआ है फिर, बच्चे के इलाज के लिए, इतने पैसों की व्यवस्था कैसे होगी? विनय को कुछ समझ में नहीं आ रहा था| उसकी पत्नी ने उसे दिलासा देते हुए पूछा, “क्या तुम्हारी कंपनी हमारी कोई मदद नहीं करेगी?” विनय ने कहा, “हम पहले ही कर्ज़ ले चुके हैं| बैंक हमें दोबारा कर्ज़ नहीं देगा|” इतना कह कर विनय, अपने कुछ दोस्तों और रिश्तेदारों के पास मदद के लिए पहुँचता है लेकिन, वहाँ भी उसे निराशा ही हाथ लगती है| विनय बुरी तरह टूट चुका था| उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि, वह क्या करे कि, सारी मुसीबतों से उसका पीछा छूट जाए| रास्ते में चलते हुए अचानक, उसे प्यास लगती है तभी, उसकी नज़र एक विदेशी परिवार पर पड़ती है जिसमें, पति पत्नी और उनका एक बेटा, साईकिल से यात्रा कर रहे थे|
वह उन्हें हाथ देकर रुकने को कहता है| विनय का इशारा पाते ही, विदेशी परिवार रुक जाता है| विनय उनसे पानी माँगता है| वह तुरंत विनय को पानी पिलाते हैं| विदेशी परिवार लंबे समय से, कई देशों की यात्रा कर रहा था इसीलिए, उन्हें कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान हो चुका था| थोड़ी बहुत बातचीत के दौरान, विनय को जैसे ही पता चलता है कि, इस व्यक्ति ने अपनी सारी संपत्ति बेच दी है और अपने परिवार के साथ, सभी देशो की यात्रा कर रहा है| इस बात से, विनय के मन में उथल पुथल मच जाती है क्योंकि, वह अपना घर होना बड़ी शान की बात समझता था| विनय को लगता है, “आख़िर कैसे कोई अपना सब कुछ बेच कर ख़ुश हो सकता है?” विनय के चेहरे के हाव भाव देखकर, विदेशी व्यक्ति को उसके दिमाग़ में चल रही उलझन, साफ़ नज़र आने लगी| विनय के विचलित मन को शांत करने के लिए, उस व्यक्ति ने विनय से कहा, “मेरा मानना है कि, पूरी दुनिया ही मेरा घर है फिर, किसी एक कोने पर अपना अधिकार जताकर मैं, इतना बड़ी पृथ्वी को पराया कैसे कर दूँ| आज मैं पूरी दुनिया के किसी भी कोने में, बिना चिंता के रह सकता हूँ लेकिन, यदि मेरा अपना मकान होता तो, शायद मुझे उसकी देख रेख के लिए, ज़्यादा परेशान होना पड़ता|” तभी विनय ने उन्हें रोकते हुए कहा, “तो क्या, हम अपना घर ही ना बनाएँ?” तभी उस व्यक्ति ने कहा, “घर तो पशु पक्षी भी बनाते हैं लेकिन, उस पर पूरी ज़िंदगी निर्भर नहीं रहते क्योंकि, हर जीव की आज़ादी ही, उनका परम लक्ष्य है फिर, फ़िज़ूल का बंधन पालकर, जीवन क्यों जिया जाए? इस दुनिया का कोई भी साधन, तब तक तुम्हारे लिए उचित है जब तक, तुम उसका इस्तेमाल करते हो लेकिन, जब तुम उस साधन के अनुरूप, इस्तेमाल होने लगो| उसकी देख रेख करने की ज़िम्मेदारी स्वीकार कर लो तो, तुम्हें जीवन का महत्व कैसे पता चलेगा| विनय बड़े ग़ौर से विदेशी की बातें सुन रहा था| अचानक उनकी बातों से प्रभावित होते हुए, उसने पूछा, “तो ऐसी परिस्थिति में हमें क्या चुनना चाहिए?” विदेशी ने मुस्कुराते हुए कहा, “वह सब कुछ छोड़ देना चाहिए, जिसकी क़ीमत चुकाने में सारी ज़िंदगी गुलाम रहकर गुज़ारनी पड़े| नहीं तो, तुम्हारी ज़िंदगी बोझ बन जाएगी और दुनिया की ग़ुलामी में तुम्हारा, वास्तविक अस्तित्व ही मिट जाएगा|” विनय उस व्यक्ति की बातें पूरी तरह समझ पाने में असमर्थ था इसलिए, वह अपनी ज़िंदगी की समस्या उन्हें बताने लगता है| वह तुरंत उसे कहते हैं, “तुम्हें अपना घर बेच देना चाहिए|” उसकी बात सुनते ही, विनय नाराज़ हो जाता है और कहता है, “मेरे घर से मेरी भावनाएँ जुड़ी है| मेरी पत्नी और बच्चों का वक़्त वहाँ गुज़रा है फिर, वह घर मैं कैसे छोड़ सकता हूँ तभी, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “जैसे एक दिन तुम, यह दुनिया छोड़कर जाओगे|” इस बात से विनय का मुँह बंद हो जाता है|
विदेशी व्यक्ति अपनी बात आगे रखते हुए कहते हैं, “तुम्हें समझना होगा कि, दुनिया की अर्थव्यवस्था चलाने के लिए सामाजिक सोच को बदलना बहुत ज़रूरी होता है और इसी योजना के तहत, बैंक जैसी बड़ी बड़ी संस्थाओं के द्वारा, मीडिया के माध्यम से, हमारे दिमाग़ में यह भावना डाली गई है कि, अपना घर होना सम्मान की बात है और हमें मानसिक तौर पर, इसी बात को सत्य मान रखा है जिससे, तुम्हारी ज़िंदगी में खुशियाँ आयी हो या नहीं लेकिन, बैंकों ने कर्ज़ के माध्यम से तुम्हें अपना ग़ुलाम ज़रूर बना लिया है|” बस फिर क्या था| विनय को एहसास होता है कि, “घर ही उसके मुसीबत की जड़ है| अगर वह इतने कर्ज़ में नहीं दबा होता तो, अपने बेटे का इलाज करवाना, कौन सी बड़ी बात थी| विनय ने वापस आते ही, अपना घर (Apna ghar) बेच दिया और अपने बेटे का इलाज करवाने के बाद, फिर से किराये के घर में रहने लगा| इस घटना ने विनय को सिखा दिया था कि, साधन सफ़र करने के लिए होते हैं| मंज़िल बनाने के लिए नहीं और इसी के साथ यह कहानी ख़त्म हो जाती है|